आज विज्ञान हर जगह घुसा हुआ है, आप जितना सोच सकते हैं उससे भी कहीं अधिक. कैसे? मेरी इस हल्की-फुल्की कविता का आनंद लिजिये.
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एक दिन पहुंचे
मित्र के घर
कविराज
चा चू पी
कहा यार
बिटिया विवाह
योग्य हो गयी है
कोई बढि़या वर ढूंढो
मित्र बोला अपनी चिंता
वही स्वंय कर रही हैं
अपना स्वंयवर कर रही है
कविराज चक्कर खा गये
बोले यार पहेलियां
मत बुझाऒ
बात क्या है?
साफ़ साफ़ बताऒ
मित्र मुस्कुराये
बोले बन्धु उस कमरे में
रिंकी
वर चुन रही है
तुम्हारी भाभी उसकी
हेल्प कर रही है
दोनों इंटरनेट पर
मेट्रोमोनिअल साईट्स
सर्फ कर रही हैं